Tuesday, 30 April 2024

Health Update  : ये तीन काम डिमेंशिया से 40 प्रतिशत तक दिला सकते हैं आराम

Health Update  : सैय्यद अबू साद Health Update  : चेतना मंच हेल्थ डेस्क। अक्सर उम्र के साथ साथ भूलने की…

Health Update  : ये तीन काम डिमेंशिया से 40 प्रतिशत तक दिला सकते हैं आराम

Health Update  :

सैय्यद अबू साद

Health Update  : चेतना मंच हेल्थ डेस्क। अक्सर उम्र के साथ साथ भूलने की बीमारी भी लोगों में बढ़ने लगती है। बुजुर्गों को आपने बहुत सी चीजों को भूलते देखा होगा, बातों को भूलते देखा होगा या कोई निर्णय लेने में असमर्थ देखा होगा। दरअसल इसकी वजह है डिमेंशिया। ये एक दिमाग की गंभीर बीमारी है, जो आमतौर पर बुढ़ापे में ज्यादा होती है। डिमेंशिया की वजह से याददाश्त कम हो जाती है और पीड़ित व्यक्ति के व्यवहार में कई बदलाव आने लगते हैं। कई बार तो ऐसे लोग अपने रोजमर्रा के काम भी ठीक से नहीं कर पाते। डब्ल्यूएचओ की माने तो दुनिया में 5 करोड़ से ज्यादा लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं और अब हर साल 1 करोड़ नए मामले सामने आ रहे हैं। डिमेंशिया की वजह से सबसे आम बीमारी अल्जाइमर होती है। अगर आप चाहते हैं कि वृद्धावस्था में आपको ये बीमारी न हो तो आपको अपनी जवानी में ही कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना होगा। डिमेंशिया से बचने के लिए सबसे पहले आपको अपनी खराब लाइफस्टाइल को बदलना होगा। इसलिए अपने बुढ़ापे को बेहतर बनाने की तैयारी अभी से शुरु कर दें।

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डिमेंशिया होने की वजह
वैसे तो डिमेंशिया होने की कई वजह हैं लेकिन अगर आपने अपनी लाइफस्टाइल में थोड़ा बदलाव कर लिया तो आप करीब 40 प्रतिशत तक इस बीमारी से बच सकते हैं। बुढ़ापे में जिनको भूलने के आदत होती है ऐसे लोगों को और उनके परिजनों को बहुत परेशानी झेलनी पड़ती है।

आइये जानते डिमेंशिया होने की वजह क्या हैं ?
1. कम मिलना-जुलना और इंट्रोवर्ट नेचर का होना, 2. सिर में गहरी चोट लगना, 3. कम पढ़ा लिखा होना, 4. धूम्रपान करना, 5. हाइपरटेंशन या ब्लड प्रेशर की बीमारी होना, 6. कम सुनना, 7. डिप्रेशन, 8. मोटापा या डायबिटीज होना, 9. प्रदूषण वाली जगह पर लंबे वक्त तक रहना, 10. ज्यादा ड्रिंक करना।

डिमेंशिया के होते हैं कई रूप
विभिन्न प्रकार के डिमेंशिया हैं। अल्जाइमर सबसे आम प्रकार है, जो 50-70 प्रतिशत मामलों में होता है। अन्य प्रकारों में वैस्कुलर डिमेंशिया, लेवी बॉडी डिमेंशिया, फ्रंटोटेम्पोरल डिमेंशिया, सामान्य दबाव हाइड्रोसिफलस, पार्किंसंस रोग, सिफलिस, क्रुट्जफेल्ट-जैकोब रोग आदि शामिल हैं। एक व्यक्ति एक से अधिक प्रकार के डिमेंशिया का अनुभव कर सकता है। यह तब होता है जब क्षति की एक श्रृंखला के कारण मस्तिष्क क्षतिग्रस्त हो जाता है। डिमेंशिया, मानसिक स्वास्थ्य की गंभीर समस्याओं में से एक है जो रोगी के सोचने, निर्णय लेने और चीजों के याद रखने की क्षमता को प्रभावित कर देती है। 60 साल से अधिक की आयु वाले लोगों में इसका जोखिम अधिक होता है। आनुवांशिकता और पर्यावरणीय कारक डिमेंशिया के जोखिम को बढ़ाने वाले माने जाते हैं। वहीं कुछ अध्ययनों में शोधकर्ताओं ने पाया कि अगर हम सभी कम उम्र से ही लाइफस्टाइल को ठीक रखने पर ध्यान दे लें तो भी इससे बचाव किया जा सकता है।

क्या कहते हैं शोध
एक शोध के अनुसार, डिमेंशिया लगभग 10 प्रतिशत लोगों को उनके जीवन में कभी न कभी होता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, विकार के विकास के जोखिम में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। 65 से 74 वर्ष की आयु के लोगों में डिमेंशिया लगभग 3 प्रतिशत में होता है, 75 से 84 वर्ष की आयु के 19 प्रतिशत लोग और 85 वर्ष से अधिक उम्र की लगभग आधी आबादी किसी न किसी रूप में डिमेंशिया से पीड़ित देखी जाती है। इसलिए, मनोभ्रंश को बुजुर्गों में विकलांगता के सबसे सामान्य कारणों में से एक माना जाता है। मनोभ्रंश के कारण होने वाली मौतों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है, वर्ष 1990 और 2013 के बीच संख्या दोगुनी हो गई है। मनोभ्रंश को आमतौर पर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में देखा गया है। कुछ अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि 65 और उससे अधिक उम्र के पुरुषों की तुलना में महिलाओं में व्यापकता दर थोड़ी अधिक है।

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में मनोचिकित्सा विभाग द्वारा किए गए शोध में पाया गया है कि जीवनशैली की गड़बड़ आदतें मस्तिष्क की क्षमता को कमजोर करती जा रही हैं, जिसके कारण अल्जाइमर और डिमेंशिया जैसी बीमारियों का जोखिम भी काफी बढ़ गया है। वहीं अगर युवावस्था से ही कुछ आदतों को लाइफस्टाइल में शामिल कर लिया जाए तो इसके जोखिम को 40 फीसदी तक कम किया जा सकता है।

साइंस ट्रांसलेशन मेडिसिन नाम की पत्रिका में छपे इस शोध के मुताबिक युवावस्था और उसके बाद के समय में पूरी नींद न ले पाना मस्तिष्क स्वास्थ्य में गिरावट का एक बड़ा संकेत हो सकता है। वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के ब्रेंडन लूसी ने कहा कम गहरी नींद लेना सामान्य और खराब मानसिक स्थिति के बीच संकेत का काम कर सकता है। हमने यह देखा कि लोगों में नींद की वजह से कैसे याददाश्त संबंधी समस्याएं होने लगती है और गैर-जिम्मेदार तरीके से अल्जाइमर रोग से ग्रसित हो जाते हैं।

डिमेंशिया के बारे में विशेषज्ञों की राय
डॉ सारा बाउर्मिस्टर के नेतृत्व में डिमेंशियाज प्लेटफॉर्म यूके और अल्जाइमर रिसर्च यूके द्वारा किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि लाइफस्टाइल की आदतें समय के साथ इस प्रकार के मानसिक रोगों के खतरे को बढ़ाती जाती हैं। वहीं शोध के दौरान जिन लोगों ने अपनी लाइफस्टाइल को ठीक रखा उनमें 60 की आयु के बाद इस तरह के रोगों का जोखिम कम पाया गया। शोधकर्ताओं ने पाया उच्च रक्तचाप, मोटापा, अल्कोहल का सेवन, मस्तिष्क की चोट, बहरापन, धूम्रपान, अवसाद जैसी स्थितियां भी डिमेंशिया का कारण बन सकती हैं।

रिम्स के न्यूरोसर्जन डा. अनिल बताते हैं कि अल्जाइमर का खतरा मस्तिष्क में प्रोटीन की संरचना में गड़बड़ी होने के कारण बढ़ता है। यह एक मस्तिष्क से जुड़ी बीमारी है, जिसमें व्यक्ति धीरे-धीरे अपनी याददाश्त खोने लगता है। अल्जाइमर बीमारी और डिमेंशिया में लोगों को अंतर समझना चाहिए। इन दोनों बीमारी में ब्रेन सिकुड़ जाता है, ब्रेन की सक्रियता कम होने लगती है। लेकिन दोनों बीमारी में उम्र का अंतर है। डिमेंशिया 70-75 वर्ष के बाद होता है। जबकि अल्जाइमर ऐसी बीमारी है, जिसे होने के लिए किसी उम्र की कोई सीमा ही नहीं है।

न्यूरोलॉजिस्ट डा. उज्जवल राय बताते हैं कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अल्जाइमर बीमारी का खतरा अधिक रहता है। डाक्टर के पास अल्जाइमर के इलाज के लिए आने वाले 10 मरीजों में से छह महिलाएं होती हैं। अल्जाइमर रोग के मामले में भारत दुनिया भर में तीसरे नंबर पर है। अल्जाइमर के मरीजों को दवाई के साथ-साथ थेरेपी भी दी जाती है। लेकिन उनकी देखभाल बेहद जरूरी होती है। लोग अगर छोटी बातों को भूलने को भी गौर करेंगे और इसका समय पर इलाज करवाया जाए तो इस बीमारी को कम उम्र में ठीक किया जा सकता है। लेकिन बढ़ती उम्र के साथ इस बीमारी का कोई कारगर इलाज नहीं है। हालांकि दवा, काउंसलिंग और जीवनशैली में बदलाव करके इस रोग से काफी हद तक बचा जा सकता है।

वे तीन रास्ते जो कम करते हैं डिमेंशिया का खतरा

डिमेंशिया के खतरों को कम करने के लिए दुनियाभर के विशेषज्ञ इन तीन चीजों पर सबसे अधिक ध्यान देने को कहते हैं…

1- आहार पर ध्यान देना बेहद जरूरी
शोधकर्ताओं ने पाया कि आहार का स्वस्थ रहना डिमेंशिया जैसे रोगों से बचाव के लिए बेहतर विकल्प हो सकता है। आहार में सेचुरेटेड फैट और शुगर की मात्रा को कम रखकर आप मधुमेह और मोटापे जैसी स्थितियों के जोखिम को कम कर सकते हैं, जो डिमेंशिया के लिए भी जोखिम कारक हैं। इसके अलावा सभी लोगों को मौसमी सब्जियों, फलों, साबुत अनाज, ऑलिव ऑयल, मछली और बीन्स से भरपूर आहार का सेवन जरूर करना चाहिए।
2- शराब और धूम्रपान से बनाएं दूरी
ऑक्सफोर्ड के विशेषज्ञों ने शराब और डिमेंशिया के बीच जटिल संबंध पाया है। मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर जॉन गैलाचर कहते हैं शराब पीने वाले लोगों में डिमेंशिया के विकसित होने का जोखिम अन्य लोगों की तुलना में अधिक होता है। इसी तरह विशेषज्ञों ने धूम्रपान और डिमेंशिया के बीच भी लिंक पर जोर दिया है। धूम्रपान, मस्तिष्क की कोशिकाओं में क्षति का कारण बनती है जिसके कारण डिमेंशिया होने का खतरा रहता है। इन दोनों आदतों को बिल्कुल छोड़ देने की सलाह दी गई है।
3- व्यायाम और मेल-मिलाप बहुत जरूरी
अध्ययन के निष्कर्षों से पता चलता है कि नियमित व्यायाम, अल्जाइमर रोगियों में सोचने और याददाश्त की क्षमता में गिरावट को कम करता है। इसके शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के स्वास्थ्य लाभ हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञ प्रति सप्ताह कम से कम 150 मिनट व्यायाम करने की सलाह देते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि मस्तिष्क को सक्रिय रखने के लिए सामाजिक रूप से लोगों से मिलते-जुलते रहना जरूरी है। शोध में पाया गया है कि जो लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं उनमें भी डिमेंशिया रोग के विकसित होने का खतरा कम हो सकता है।

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