Saturday, 27 April 2024

बूंद-बूंद पानी को तरसेगा भारत का दुश्मन, रावी नदी के बांध से होगा कमाल

भारत का पड़ोसी देश पाकिस्तान लगातार भारत से दुश्मनी करता रहा है। भारत ने बार-बार प्रयास किया है कि पाकिस्तान…

बूंद-बूंद पानी को तरसेगा भारत का दुश्मन, रावी नदी के बांध से होगा कमाल

भारत का पड़ोसी देश पाकिस्तान लगातार भारत से दुश्मनी करता रहा है। भारत ने बार-बार प्रयास किया है कि पाकिस्तान दुश्मनी छोडक़र एक अच्छा पड़ोसी बन जाए। तमाम प्रयासों के बावजूद पाकिस्तान है कि मानता ही नहीं। अब भारत ने भी ठान लिया है कि भारत पाकिस्तान को हर मोर्चे पर सबक सिखाएगा। ऐसा ही एक मोर्चा है भारत की नदियों का पानी पाकिस्तान में जाने का मोर्चा। भारत ने रावी नदी पर बांध बनाकर पाकिस्तान को बूंद-बूंद पानी के लिए तरसने को मजबूर कर दिया है। रावी नदी पर शाहपुर कंडी में बांध बनकर तैयार हो चुका है। अब जल्दी ही पाकिस्तान पानी को तरसेगा।

केवल भारत में बहेगी रावी नदी

भारत से लगातार दुश्मनी निभा रहे पाकिस्तान को भारत ने पानी जैसे महत्वपूर्ण मोर्चे पर घेर लिया है। भारत की दूरदर्शी नीति के कारण भारत की रावी नदी अब पाकिस्तान तक पानी नहीं पहुंचाएगी। भारत ने रावी नदी पर बांध बनाकर रावी नदी को केवल भारत की धरती पर ही बहते रहने की व्यवस्था कर दी है। पाकिस्तान को रावी नदी के जल (पानी) की एक बूंद तक अब मिलने वाली नहीं है।

क्या है रावी नदी वाला मोर्चा ? भारत ने इस मोर्चे को कैसे जीत लिया? इस विषय पर जाने माने पत्रकार के.एस. तोमर ने एक व्यापक विश्लेषण किया है। इस विश्लेषण को पढक़र आप भी समझ जाएंगे कि भारत को अपना दुश्मन मानने वाला पाकिस्तान अब एक-एक बूंद पानी के लिए कैसे तरसेगा?

कश्मीर तथा पंजाब का भला, दुश्मन का सूखेगा गला।

वरिष्ठ पत्रकार के.एस. तोमर ने अपने विश्लेषण में लिखा है कि बात 2016 की है, जब प्रधानमंत्री मोदी ने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए जम्मू-कश्मीर व पंजाब के लाखों किसान परिवारों के हित में रावी नदी के पानी को पाकिस्तान जाने से रोकने का साहसी फैसला लिया था। यह फैसला अब हकीकत बन गया है। शाहपुर कंडी बांध के पूरा होने और पाकिस्तान को पानी रोकने से दोनों राज्यों के किसानों के चेहरे पर खुशी लौट आई है। अब जम्मू के कठुआ और सांबा जिलों की 1,27,587 बीघे और पंजाब की 20,624 बीघे जमीन की सिंचाई सुनिश्चितश्चित् हो सकेगी।

देश के सर्वोच्च हितों का ख्याल रखते हुए और 1960 की सिंधु जल संधि की मूल भावना के अनुरूप रावी नदी पर 3,300 करोड़ रुपये की लागत से तैयार शाहपुर कंडी परियोजना जम्मू व पंजाब के लिए समृद्धि के एक नए युग की शुरुआत करेगी। यह कठुआ और सांबा जिले के लिए 32 वर्षों बाद एक सपने के सच होने जैसा है, क्योंकि यहां के लोगों को सिंचाई सुविधाओं की कमी के चलते परेशानी उठानी पड़ती थी। इसके अलावा, इस वर्ष के अंत तक तैयार होने वाली 206 मेगावाट की परियोजना से पंजाब के किसान लाभान्वित होंगे। इस पूरे मामले में पाकिस्तान ने सतर्कतापूर्ण चुप्पी साधी हुई है।

पहले कहा जा रहा था कि रावी का पानी रोके जाने पर पाकिस्तान में काफी हल्ला मचेगा, लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ, तो इसकी वजह है कि 1960 की सिंधु जल संधि के प्रावधानों का कहीं कोई उल्लंघन नहीं हुआ है। इस संधि के अनुसार, रावी, सतलज व ब्यास नदी के पानी पर भारत का और झेलम, सिंधु व चिनाब के पानी पर पाकिस्तान का विशेष अधिकार होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने 2016 में ही घोषणा की थी कि भारत रावी, सतलज व ब्यास नदियों के पानी के समुचित उपयोग व पाकिस्तान में बहने वाले पानी की बर्बादी को रोकने के लिए तार्किक कदम उठाएगा। तीनों नदियों के पानी के उपयोग और इसे जम्मू- कश्मीर व पंजाब के किसानों को उपलब्ध कराने की पद्धति का अध्ययन करने के लिए एक टास्क फोर्स का भी गठन किया गया था।

इससे पहले 1995 में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय नरसिंह राव ने शाहपुर कंडी बांध की आधारशिला रखी, लेकिन यह पंजाब व जम्मू-कश्मीर सरकारों की खींचतान में उलझ कर रह गया। राजनीतिक वजहों से इसके क्रियान्वयन में जो साढ़े चार वर्ष की देरी हुई, उससे इसकी लागत 2,793 करोड़ रुपये से बढक़र 3,300 करोड़ रुपये हो गई। प्रधानमंत्री मोदी के हस्तक्षेप व प्रधानमंत्री कार्यालय में केंद्रीय राज्य मंत्री, जो खुद जम्मू के निवासी हैं, के प्रयासों से गाड़ी फिर से पटरी पर लौटी और केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय से इसके लिए आवश्यक वित्त की व्यवस्था हुई। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने केंद्र को अपना हिस्सा साठ से घटाकर चौदह फीसदी करने के लिए राजी किया। इस परियोजना में 71.39 फीसदी बिजली और 28.61 फीसदी सिंचाई से जुड़े घटक भी शामिल हैं।

केंद्र ने इसे नाबार्ड के जरिये वित्तपोषित किया है। पंजाब के पठानकोट जिले में रावी नदी पर वर्तमान सागर बांध के डाउनस्ट्रीम पर स्थित शाहपुर कंडी बांध की ऊंचाई 55.5 मीटर है। इसमें दो पावर हाउस भी हैं, जो राजस्व कमाने के लिए सिंचाई और बिजली के दोहरे उद्देश्यों को पूरा करेंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि इस परियोजना से जम्मू के किसानों की बंजर जमीन का शाप खत्म हो सकेगा, जो कि कंडी का शाब्दिक अर्थ है। इस परियोजना से हरियाली बंजर भूमि का स्थान लेगी और बाढ़ व तबाही का नियमित खतरा कम हो जाएगा। 1,378 मीटर की तीसरी जे एंड के नहर कठुआ के 512 गांवों की छह लाख से ज्यादा आबादी और सांबा के 368 गांवों की तीन लाख से ज्यादा आबादी को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराएगी।

इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर को रावी से 6.9 लाख एकड़ फीट पानी की पात्रता के अलावा 3.40 रुपये प्रति यूनिट की दर से परियोजना से उत्पन्न 20 फीसदी बिजली मिल सकेगी। इस परियोजना से दोनों राज्यों की पर्यटन क्षमता में भी इजाफा होगा। विश्लेषकों का मानना है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति नौकरशाही संबंधी बाधाओं व वित्तीय चुनौतियों को खत्म कर देती है। शाहपुर कंडी बांध परियोजना में ठीक यही दिखा। लेकिन अंतत: यह जम्मू-कश्मीर व पंजाब के किसानों के उदास चेहरों पर खुशियां लेकर आई है।

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