Friday, 26 April 2024

नि:संकोच : गंदगी साफ करने से बचते हैं लोग!

विनय संकोची आदमी अपने व्यवहार, अपने आचरण और अपने कर्मों से समाज में प्रतिष्ठित होता है, इज्जत कमाता है। आदमी…

नि:संकोच : गंदगी साफ करने से बचते हैं लोग!

विनय संकोची

आदमी अपने व्यवहार, अपने आचरण और अपने कर्मों से समाज में प्रतिष्ठित होता है, इज्जत कमाता है। आदमी अपनी वाणी के माध्यम से लोगों को अपना बनाता है, लोगों के दिलों में बैठ जाता है। सत्य, सरल, सहज और सात्विक व्यक्ति में किसी को भी अपना बनाने का स्वाभाविक गुण होता है और इस गुण का लाभ उन्हें जीवन पर्यंत मिलता है। इसके विपरीत कटु वचन बोलने वाला, मिथ्यावादी, लंपट, लालची, कपटी और ढोंगी व्यक्ति यदि सोने का भी बन कर आ जाए, तब भी लोग उसे अच्छी नजर से नहीं देखते हैं। इतिहास गवाह है कि आज तक किसी चोर, गिरहकट, बदमाश, अत्याचारी, दुराचारी, विश्वासघाती और धोखेबाज को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा गया है। हां, यदि किसी दुष्ट का वास्तव में हृदय परिवर्तन हुआ है, तो लोगों ने उसे गले लगाया है। गंदगी के पास कोई बैठना पसंद नहीं करता है, लेकिन समाज की सबसे बड़ी कमी है कि कोई गंदगी को साफ भी करना नहीं चाहता है। नाक पर रूमाल रख लेंगे लेकिन गंदगी को साफ करने का साहस नहीं दिखाएंगे। यह हमारे समाज का दुर्भाग्य है।

जब समाचार छपता है कि एक छात्रा ने एक महिला की चेन छीन कर भाग रहे बदमाश को दौड़ाकर पकड़ लिया, तो अच्छा लगता है। जब समाचार प्रकाशित होता है कि किसी महिला ने घर में घुसे तीन बदमाशों का डटकर सामना किया और घायल हो जाने के बावजूद दो बदमाशों को दबोच लिया तो अच्छा लगता है। जब 60 वर्ष का एक बूढ़ा व्यक्ति, व्यापारी को लूट कर भाग रहे बाइक सवार बदमाशों को गिरा कर पकड़ लेता है, तो अच्छा लगता है। जब एक बच्चा पड़ोस वाली आंटी की इज्जत पर हाथ डालने वाले का सिर फोड़ देता है, तो अच्छा लगता है। सच तो यह है कि ऐसे लोग भी बहुत अच्छे हैं, इनका साहस और भी ज्यादा अच्छा है,सराहनीय है। ये सभी सम्मान के अधिकारी हैं।

इसके विपरीत कुछ लोग क्षुद्र स्वार्थों के लिए, जो असत्य का साथ देते हैं, जो किसी की गलती पर पर्दा डालते हैं, जो अपने पर हुए अत्याचार को भुलाने का नाटक करते हैं, जो अन्याय करने वाले को महिमामंडित करते हैं, जो किसी ऐसे व्यक्ति का साथ देते हैं, जिसका स्वभाव ही दूसरों को अपमानित करना हो, नीचा दिखाना हो, जो बेपेंदी के लोटे की तरह लुढ़कते हों, जो अपने डरपोकिया व्यवहार से गलत लोगों की हिम्मत बढ़ाते हैं, वे सब-के-सब समाज के अपराधी हैं। जो स्वयं को महान विभूतियों का अनुयायी बताते हैं और उनके विरुद्ध आचरण करते हैं, वे अपने इष्ट के अपराधी हैं। सीधी सी बात है समाज वैसा बनता है, जैसा अधिकांश लोग आचरण करते हैं और यदि आचरण सुधर जाए तो समाज सुधर जाए।

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