नई दिल्ली। भारत ही नहीं सारा विश्व वर्तमान में एक ऐसी समस्या से जूझ रहा है जिसका वक्त रहते अगर…
Sonia Khanna | September 27, 2021 10:40 AM
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नई दिल्ली। भारत ही नहीं सारा विश्व वर्तमान में एक ऐसी समस्या से जूझ रहा है जिसका वक्त रहते अगर समाधान न किया गया तो शायद धरती का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है। एक नई रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन की वजह से बुजुर्गों के मुकाबले बच्चों को भारी गर्मी, बाढ़ और सूखे का सामना करना पड़ेगा। नेपाल से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक हर जनमानस अपने देश के कर्णधारों से इसे नजरअंदाज ना करने की अपील कर रहे हैं। ‘सेव द चिल्ड्रन’; एनजीओ की एक नई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन की वजह से बच्चों को औसतन सात गुना ज्यादा गर्मी की लहरों और करीब तीन गुना ज्यादा सूखे, बाढ़ और फसलों के बेकार होने का सामना करना पड़ सकता है। मध्य और कम आय वाले देशों के बच्चों पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ेगा। अफगानिस्तान में वयस्कों के मुकाबले बच्चों को 18 गुना ज्यादा गर्मी की लहरों का सामना करना पड़ सकता है। माली में संभव है कि बच्चों को 10 गुना ज्यादा फसलों के बेकार हो जाने का असर झेलना पड़े।
सबसे ज्यादा असर बच्चों पर : नेपाल की रहने वाली 15 वर्षीय अनुष्का कहती हैं, “लोग कष्ट में हैं, हमें इससे मुंह नहीं मोड़ना चाहिए ,जलवायु परिवर्तन इस युग का सबसे बड़ा संकट है।” अनुष्का ने पत्रकारों को बताया, “मैं जलवायु परिवर्तन के बारे में, अपने भविष्य के बारे में चिंतित हूं। हमारे लिए जीवित रहना लगभग नामुमकिन हो जाएगा।” नया शोध, सेव द चिल्ड्रन और बेल्जियम के व्रिये यूनिवर्सिटेट ब्रसल्स के जलवायु शोधकर्ताओं के बीच सहयोग का नतीजा है। इसके लिए 1960 में पैदा हुए बच्चों के मुकाबले 2020 में पैदा हुए बच्चों के पूरे जीवन काल में चरम जलवायु घटनाओं के उनके जीवन पर असर का हिसाब लगाया गया। यह अध्ययन विज्ञान की पत्रिका “साइंस” में भी प्रकाशित किया जा चुका है।
स्थिति में किया जा सकता है बदलाव : इसमें कहा गया है कि वैश्विक तापमान में अनुमानित 2.6 से लेकर 3.1 डिग्री सेल्सियस तक की बढ़त का “बच्चों पर अस्वीकार्य असर” होगा। सेव द चिल्ड्रन के मुख्य कार्यकारी इंगर अशिंग ने कहा, “जलवायु संकट सही मायनों में बाल अधिकारों का संकट है” अशिंग ने आगे कहा, “हम इस स्थिति को पलट सकते हैं लेकिन उसके लिए हमें बच्चों की बात सुननी होगी और तुरंत काम शुरू कर देना होगा। अगर तापमान के बढ़ने को 1.5 डिग्री तक सीमित किया जा सके तो आने वाले समय में पैदा होने वाले बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए काफी ज्यादा उम्मीद बन सकती है।”