Saturday, 27 April 2024

अब क्या होगा?, हर समय यही सोचने से हो जांएगे बीमार

Overthinking : अब क्या होगा?, आगे क्या होगा?, क्या होगा अगर….? हर समय इस प्रकार के सवालों से घिरे रहना…

अब क्या होगा?, हर समय यही सोचने से हो जांएगे बीमार

Overthinking : अब क्या होगा?, आगे क्या होगा?, क्या होगा अगर….? हर समय इस प्रकार के सवालों से घिरे रहना बहुत खतरनाक स्थिति है। यदि आप भी क्या होगा अगर…? में उलझे रहते हैं तो जरा सावधान हो जाएं। हर समय क्या होगा? सोचते रहने से आप बहुत बीमार हो सकते हैं। बीमारी भी ऐसी होगी कि आपको पता ही नहीं चलेगा कि आप बीमार हो गए हैं। आप डिप्रेशन के मरीज हो सकते हैं। यह बीमारी आपको अंदर ही अंदर खा जाएगी।

Overthinking

हर समय अटकना बंद करें

दुनिया की प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक किस्र्टी रॉस ने इस विषय में एक महत्वपूर्ण विश्लेषण किया है। आप भी यहां उस विश्लेषण को ध्यान से पढ़ लीजिए और हर समय एक ही सवाल क्या होगा? क्या होगा अगर ऐसा हो गया तो? पर अटकना बंद कर दीजिए। उम्मीद है कि प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक किस्र्टी रॉस का यह विश्लेषण आपके जीवन को पूरी तरह से बदल ही देगा।

आखिर आप सोच क्या रहे हैं

किस्र्टी रॉस ने लिखा है कि मैं एक नैदानिक मनोविज्ञानी हूं और मेरे पास अक्सर लोग आकर बताते हैं कि उन्हें अपने विचारों को नियंत्रित करने में परेशानी हो रही है। लोग दरअसल, मनन और अत्यधिक विचार करने की प्रवृत्ति को एक ही मान लेते हैं, जबकि ये परस्पर जुड़े होने के बावजूद थोड़े अलग हैं। बगैर समस्या का समाधान ढूंढे एक ही तरह के विचारों का बार-बार विश्लेषण करना एक परेशानी है। यह उसी तरह है, जैसे हम किसी रिकॉर्ड के एक ही हिस्से को बार-बार सुन रहे हों। मनुष्य के दिमाग में खतरों से निपटने और उनसे खुद को सुरक्षित करने के लिए योजना बनाने की क्षमता है, लेकिन जब हम ‘क्या होगा अगर…?’ के भंवर में फंसते हैं, तो फिर यह क्षमता धरी की धरी रह जाती है। इस भंवर में पडक़र या तो हम अतीत या फिर भविष्य की चिंताओं में खुद को उलझा लेते हैं और वर्तमान से दूर हो जाते हैं। ज्यादातर लोग कभी न कभी खुद को ऐसी स्थिति में पाते हैं, जब वे जरूरत से ज्यादा सोच रहे होते हैं। जो लोग पहले नकारात्मक हालात का सामना कर चुके होते हैं या जो लोग ज्यादा भावुक होते हैं और भावनाओं को ज्यादा गहराई से महसूस करते हैं, उनमें भी जरूरत से ज्यादा सोचने की प्रवृत्ति विकसित हो सकती है। इसके अलावा, जब हम तनावग्रस्त होते हैं, तब भी हम अपने ही विचारों पर अटक सकते हैं। जब भी ऐसी स्थितियां आएं, तो भावना-केंद्रित और समस्या-केंद्रित, दोनों रणनीतियों का उपयोग करना सहायक होता है। नहीं तो आप डिप्रेशन के मरीज हो सकते हैं।

भावना-केंद्रित होने का अर्थ है-यह पता लगाना कि हम किसी चीज के बारे में कैसा महसूस करते हैं और उन भावनाओं से निपटना। उदाहरण के लिए, जो कुछ घटित हो चुका है, उसके बारे में हम पछतावा, क्रोध या उदासी महसूस कर सकते हैं या जो कुछ घटित हो सकता है, उसके बारे में चिंता कर सकते हैं। समस्या-केंद्रित तरीका वह है, जिसमें आप समाधान के विषय में आगे बढ़ते हैं। आप एक योजना बनाते हैं और उस पर काम भी करते हैं। हालांकि हर चीज योजना के मुताबिक हो, यह संभव नहीं। ज्यादा उपयोगी यह है कि अधिक संभावित संभावनाओं में से एक या दो के लिए योजना बनाएं और स्वीकार करें कि ऐसी चीजें हो सकती हैं, जिनके बारे में आपने नहीं सोचा है। हमारी भावनाएं और अनुभव जानकारियां हैं, इसलिए खुद से यह पूछना महत्वपूर्ण है कि यह जानकारी आपको क्या बता रही है और ये विचार अब क्यों दिखाई दे रहे हैं। चीजों को स्वीकार करना और खुद से बात करते रहना जरूरी है।

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