Sunday, 17 November 2024

अद्भुत है आर्य समाज की संस्था गुरुकुल कांगड़ी का इतिहास, 1902 में हुआ था स्थापित

Gurukul Kangri University : भारत के उत्तराखंड राज्य के हरिद्वार शहर में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय स्थापित है। गुरुकुल कांगड़ी को…

अद्भुत है आर्य समाज की संस्था गुरुकुल कांगड़ी का इतिहास, 1902 में हुआ था स्थापित

Gurukul Kangri University : भारत के उत्तराखंड राज्य के हरिद्वार शहर में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय स्थापित है। गुरुकुल कांगड़ी को प्रसिद्ध सामाजिक संस्था आर्य समाज की सबसे बड़ी संस्था के रूप में भी जाना जाता था। गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना आर्य समाज के प्रसिद्ध चिंतक स्वामी श्रद्धानंद ने की थी। गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना का मकसद भारत के बच्चों को विदेशी शिक्षा से बचाने तथा शुद्ध भारतीय शिक्षा प्रदान करने का था। पूरे 122 साल बीतने के बाद भी गुरुकुल कांगड़ी भारत और भारतीय समाज की भरपूर सेवा करने का काम कर रहा है।

Gurukul Kangri University

गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना का रोचक किस्सा

गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना में ढेर सारी बाधाएं आई थी। इन तमाम बधाओं को पार करते हुए स्वामी श्रद्धानंद ने भारत का यह अद्भुत गुरुकुल स्थापित करने में सफलता प्राप्त की थी। गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना से जुड़ा हुआ एक रोचक किस्सा हम आपको बता रहे हैं। आपको बता दें कि स्वामी श्रद्धानंद जी ने हरिद्वार में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की स्थापना की। यह विश्वविद्यालय गंगा के पास बियाबान जंगल में बनाया गया था। जहां जंगली जानवर भी बिचरते रहते थे। स्वामी जी ने वैदिक विचार वाले परिवारों में पहुंचकर बच्चों को गुरुकुल भेजने की प्रेरणा दी। लोग अपने बच्चों को जंगल में बने गुरुकुल में भेजने से झिझकते थे। स्वामी जी ने घोषणा की, मै सबसे पहले अपने पुत्र इंद्र को गुरुकुल में प्रवेश दिलाता हूं। उन्होंने अपने दोनों पुत्रों तथा निकट संबंधियों के बच्चों को प्रवेश दिला दिया। अब तो बड़े-बड़े परिवारों के बच्चे भी पढ़ने आने लगे। एक दिन स्वामी जी से उनके एक सहयोगी ने पूछा आपके दोनों पुत्रों के गुरुकुल में प्रवेश लेते ही अन्य परिवारों ने अपने बच्चों का दाखिला कराना शुरू कर दिया है। इसका क्या कारण है?

स्वयं की आहुति

स्वामी जी ने कहा कि वेदों में कहा गया है, कि जिस कार्य को हम संपन्न करना चाहते हैं, उसमें सबसे पहले स्वयं आहुति देनी चाहिए। इसलिए मैंने गुरुकुल के निर्माण के लिए सबसे पहले अपनी कमाई का अंशदान में दिया। जब छात्रों की आवश्यकता हुई, तो मैने अपने दोनों पुत्रों को उसमें प्रवेश दिलाया, और कुछ ही वर्षों में गुरुकुल विद्यालय की गणना अग्रणी शिक्षा केंद्र के रूप में होने लगी।

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