Rajasthan News: मां चामुंडा देवी का जोधपुर में विशालकाय मंदिर है। इलाके में मां चामुंडा देवी जी को अब से करीब 550 साल पहले मंडोर की परिहारो की कुलदेवी के रूप में पूजा जाता था । जोधपुर की स्थापना के साथ ही मेहरानगढ़ की पहाड़ी पर जोधपुर के किले पर इस मंदिर को स्थापित किया गया । मां चामुंडा जोधपुर के राजघराने की इष्ट देवी हैं। मां चामुंडा के इस मंदिर की स्थापना 1459 में राव जोधा जी ने की थी। पहले मां चामुंडा को जोधपुर और आसपास के लोग मानते थे और इनकी पूजा-अर्चना किया करते थे।
मेहरानगढ़ की पहाड़ी पर जोधपुर के किले पर स्थापित है मंदिर
लेकिन मां चामुंडा में लोगों का विश्वास 1965 के युद्ध के बाद बढ़ता चला गया । लोगों की आस्था बढ़ने की पीछे की वजह के बारे में कहा जाता है कि जब 1965 का युद्ध हुआ था तब सबसे पहले जोधपुर को टारगेट बनाया गया था और मां चामुंडा ने चील के रूप में प्रकट होकर जोधपुर वासियों की जान बचाई थी और किसी भी तरह का कोई नुकसान जोधपुर को होने नहीं दिया था। तब से जोधपुर वासियों में चामुंडा जी के प्रति अटूट विश्वास है।
1965 के युद्ध के बाद बढ़ा विश्वास
बहुत वर्ष पूर्व जोधपुर में राजा परिहारो का राज था । उनकी कुलदेवी चामुंडा माता जी थी । अपने राजपुत्र के विवाह हेतु राजा ने देवी चामुंडा से बारात में चलने की प्रार्थना की, तब देवी मां ने वचन दिया मैं तेरे साथ चलती हूं परंतु जहां मुझे कोई भक्त रोक देगा मैं वहीं रुक जाऊंगी ।
चामुंडा माता के स्थापित होने की कथा
बारात में जालौर जनपद के रमणीय गांव के कृपा सिंह जी भी अपनी 1000 गाय लेकर आए थे। बारात जंगल से जा रही थी। साथ चल रहे रथ , घोड़ों और संगीत की ध्वनि से गायें डरकर भटक गई । तब कृपा सिंह जी ने गौ माता को पुकारा हे माँ! हे माँ! उसी क्षण मां चामुंडा पहाड़ फाड़ कर अंतर्धान हुई और उसी दिन से गाजण माता नाम प्रचलित हुआ।
मां चामुंडा ने चील के रूप में प्रकट होकर जोधपुर वासियों की जान बचाई थी
उस समय राजा के देवी मां से प्रार्थना करने पर मां ने कहा अब मैं तुम्हारे साथ नहीं चलूंगी। अपने पुत्र के विवाह के पश्चात जहां तुम बंदनवार बांधने जाओगे वहां पीछे हटना ,क्योंकि बंदनवार बांधने के पश्चात छत गिर जाएगी। इससे तुम्हारी जान बच जाएगी । राजा ने विनम्रता पूर्वक मां से पूछा इस सुनसान घने जंगल में आपकी नित्य पूजा कौन करेगा? मां ने कहा जिस भक्तों ने मुझे रोका है वही मेरी पूजा करेगा। तभी से गाजण माता की पूजा प्रारंभ हुई । और उस गांव का नाम धरमधारी रखा गया । इसी प्रकार कृपाल सिंह जी के परिवार के द्वारा यह पूजा अब तक सम्पन्न की जा रही है । जोग सिंह जी राजपुरोहित के बाद भंवर सिंह जी राजपुरोहित मां की पूजा अर्चना करते हैं।
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