प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिका में कहा है कि हम भारत में लोकतंत्र को जीते हैं। उनके इस भाषण पर प्रसिद्ध कवि व राजनेता उदय प्रताप सिंह ने विस्तार से टिप्पणी की है। उदय प्रताप सिंह ने इस मुददे पर चेतना मंच के लिए एक लम्बा लेख लिखा है। नीचे हम उनका पूरा लेख आपको पढ़वा रहे हैं।
Uday Pratap Singh
हम भारत में लोकतंत्र जीते हैं : प्रधानमंत्री
उदय प्रताप सिंह लिखते हैं कि भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने अमेरिका में अपने स्वागत के पश्चात भाषण में कहा कि हम हिंदुस्तान में लोकतंत्र को जीते हैं। सुनने में बहुत अच्छा लगा, किंतु जब हम भारतवर्ष में राजनीतिक परिदृश्य पर नजर डालते हैं तो पता चलता है इस कथन में और जो हो रहा है, उसमें पूरब तथा पश्चिम का अंतर है। भारत में लोकतंत्र, गणराज्य, संविधान, लोक हितकारी सरकार के सारे मूल्यों की अवमानना हो रही है। यहां तक की गणतंत्र और न्यायालय भी अपने स्तर से नीचे खिसक रहे हैं। मीडिया का खासतौर से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का जो हाल है, वह किसी से छुपा नहीं है। उस पर टिप्पणी क्या करें? उन्हें मीडिया कहने की बजाय सरकार का प्रचार तंत्र कहा जाए तो ज्यादा अच्छा है। जिस प्रकार शासन की शैली है और उसमें सत्ता के केंद्रीकरण की तरफ झुकाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है।
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वे आगे लिखते हैं कि औलिगारकीं की तरह सारे फैसले चंद लोगों को ही लेने का ही अधिकर है। और बाकी जो कुछ दिखाई देता है वह कागजी है। निजी करण भी प्रकारान्तर से विकेंद्रीकरण का अनुमोदन है। निजीकरण पूंजीवाद का समर्थन है, जो किसी भी प्रकार से संविधान सम्मत नहीं है। मुझे याद है कि नरेंद्र मोदी जी जब वह 2001 से 14 तक गुजरात के मुख्यमंत्री थे, उन्होंने कई बार शिकायत की थी कि मनमोहन सरकार का झुकाव सत्ता के केंद्रीकरण की तरफ है। और प्राइम मिनिस्टर के कैंडिडेट के रूप में मोदीजी ने कई बार कहा था, जब वह आएंगे तो राज्यों को और लोकतांत्रिक संस्थाओं को अधिक स्वायत्तता देंगे। उनके घोषणापत्र में भी यह बात लिखी हुई थी। इसलिए जब अमेरिका में मोदी जी ने लोकतंत्र को जीने की बात कही तो कोई नई बात नहीं थी। कहते तो वह हमेशा रहते हैं, लेकिन वह चाहे जो सोचते हों, लेकिन जो उनकी सरकार की शैली है, वह विकेंद्रीकरण के विरुद्ध सत्ता के केंद्रीकरण के पक्ष में दिखाई देती है।
श्री उदय प्रताप सिंह ने आगे लिखा है कि भारत सरकार की कार्य की शैली बीजेपी की घोषणाओं के विपरीत दिखाई देती है।
उदाहरण के लिए जीएसटी का लाना राज्यों के अधिकारों में कमी करने का एक बहाना था। बीजेपी ने घोषणा की थी कि वह इंटर स्टेट काउंसिल बनाएंगे। क्या कोई बता सकता है कि अंतरराज्य परिषद की आज तक कितनी बैठकें हुई हैं? मुझे एक के अलावा दूसरे का ज्ञान नहीं है। उसकी भी सिफारिश कितनी मानी गई, यह भी संदिग्ध है। मोदी जी जब सत्ता में नहीं थे तो प्राय: कहा करते थे कि सरकार में सब कुछ प्रधानमंत्री के नाम पर होता है। लेकिन, जब वह स्वयं सत्ता में आए तो स्वच्छ भारत मिशन, प्रधानमंत्री आवास योजना, जन धन योजना, उज्ज्वला योजना, गरीबों को भोजन बांटने से लेकर योग के प्रचार और प्रसार तक सारा श्रेय सरकार स्वयं लेना चाहती है और प्रधानमंत्री के नाम पर करना चाहती है। जब प्रधानमंत्री जी ने एक दिन यकायक 8 बजे शाम को घोषणा की थी नोटबंदी की और 12 बजे रात से पुराने नोटों का चलन बंद हो गया था, तब उन्होंने क्या वित्त मंत्री से राय ली थी या किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री से या अन्य जानकारों से राय ली थी। यह फैसला ऐसे ही था जैसे पुराने जमाने में राजा अपना फरमान जारी किया करते थे। क्या यह लोकतंत्र जीना है?
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उन्होंने आगे लिखा है कि प्रधानमंत्री चाहे कहें कुछ भी, लेकिन हिंदुस्तान में लोकतंत्र हम जी नहीं रहे हैं। जैसा होना चाहिए वैसा नहीं है। इस बात को कई वैश्विक संस्थाओं ने भी कहा है। 2017 में गोवा में जिस तरह गवर्नर ने बीजेपी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था, हालांकि उनके पास पर्याप्त विधायक नहीं थे? क्या यह लोकतंत्र जीने का तरीका है। आरोप तो यह भी है कि अरुणाचल प्रदेश में और उत्तराखंड में जिस प्रकार कांग्रेस की सरकारों को बर्खास्त किया गया, हटाया गया, और जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसका संज्ञान लेते हुए अरुणाचल के गवर्नर की कार्यवाही पर उंगली उठाई थी? इसलिए जब मैंने कहा कि मोदी जी कहते हैं कि हम लोकतंत्र जीते हैं तो सुनने में अच्छा लगता है। लेकिन, जब हम भारत के राजनीतिक परिदृश्य पर दृष्टिपात करते हैं तो लगता है कि संविधान और संविधान निर्माताओं की आशाओं के विपरीत भारत में लोकतंत्र का स्तर जैसा होना चाहिए वैसा नहीं है। वैश्विक सूचकांक में भी मोदी सरकार आने के बाद हमारा लोकतंत्र का स्तर 50 अंक नीचे आया है।
Uday Pratap Singh
उदय प्रताप सिंह अंत में लिखते हैं कि जिस तरह आज तक संसद में विपक्ष के नेता की नियुक्ति नहीं हुई है। राज्यसभा के उपसभापति का चयन नहीं हुआ है। जिस प्रकार ईडी, सीआईडी, इनकम टैक्स जैसी संस्थाओं का विपक्ष के नेताओं को धमकाने डराने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, और जिस प्रकार सरकार की नीतियों के विरुद्ध बोलने वालों को राष्ट्रद्रोह में निरुद्ध किया जाता है, जबकि सरकार से सवाल करना उसकी नीतियों पर चर्चा करना हमारा संवैधानिक सम्मत अधिकार है। इन सब बातों के अतिरिक्त जिस प्रकार धर्म पूंजी और सत्ता का अनैतिक गठबंधन चल रहा है वह लोकतंत्र के सर्वथा विरुद्ध है, इसलिए हम चाहते हैं कि माननीय प्रधानमंत्री जी ने जो कुछ अमेरिका में कहा है, उसकी मर्यादा रखने के लिए भारत में लौटने के पश्चात इन सब बातों पर संज्ञान लेने की कृपा करें।
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