Sunday, 1 December 2024

शिव पुत्री नर्मदा के पृथ्वी पर अवतरण की कहानी

Story Of Narmada River :  भारत की सबसे प्राचीन तम नदियों में नर्मदा है और इसके पृथ्वी पर अवतरण की…

शिव पुत्री नर्मदा के पृथ्वी पर अवतरण की कहानी

Story Of Narmada River :  भारत की सबसे प्राचीन तम नदियों में नर्मदा है और इसके पृथ्वी पर अवतरण की कथा सरस्वती गंगा और यमुना से भी पुरानी है । पौराणिक कथा के अनुसार चंद्रवंशी चक्रवर्ती सम्राट पुरुरवा के द्वारा कई यज्ञ करके ब्राह्मणों एवं ऋषि-मुनियों को अपनी दान दक्षिणा से संतुष्ट कर जब वह सिंहासन पर बैठे , तो उन सभी ने निवेदनकरते हुये कहा कि-
हे महाराज आपके पितामह चंद्रमौलि शिवजी के मस्तक पर विराजते हैं । आपके पिता बुध सभी ग्रहों में युवराज हैं और आपकी माता इला स्वयं सूर्य पुत्र मनु की बेटी हैं । इस प्रकार से आप चंद्र एवं सूर्य दोनों वंशों का प्रतिनिधित्व करते हुये महान चक्रवर्ती राजा बने । आपको प्रसन्न करने के स्वयं देवराज इंद्र ने यज्ञ कीअग्नि उपहार में दी जिसके द्वारा आप यज्ञ परम्परा के जन्मदाता बने । आप अपने इसी महती तप के कारण ही इस पृथ्वी पर सूर्य वंश के बाद चंद्र वंश की स्थापना करने में समर्थ हुये ।
उनके द्वारा अपना स्तुति गान सुनकर प्रसन्न हुये राजा ने कहा -हे ऋषिवर मैं सामर्थ्यवान था इसलिए यज्ञ कर लिया । अब आप सभी मुझे यह बतालायें की अन्य पापमोहित व्यक्ति किस प्रकार से विना यज्ञ किये पाप विमोचित हो सकता है , क्यों कि हर व्यक्ति यज्ञ नही कर सकता । अत: अब आप सभी मानव कल्याण के लिये मुझसे उस उपाय को कहें । तब समस्त संसार के कल्याण के लिये लोक हितकारी इस प्रशन की प्रशंसा करते हुये ऋषि मुनियों ने कहा कि -तुम्हारा यह प्रश्न अति गूढ़ है । इस संसार को केवल अपने दर्शन मात्र से ही पाप विमोचित करने की शक्ति केवल शिव पुत्री नर्मदा में है । अत:आप शिव जी को प्रसन्न कर नर्मदा जी को धरती पर अवतरित करिये । आपका यह कार्य समस्त मानव कल्याण और इस निर्जल जम्बू द्वीप जो विना जल के निराधार हो रहा है उसका उद्धार होगा ।

पुरूरवा ने किया नर्मदा के लिए तप

ऋषि-मुनियों के आदेश और परामर्शानुसार महाराज पुरूरवा शिव जी की तपस्या के लिये हिमालय पर्वत पर जाकर संलग्न हो गये । उनकी कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने प्रकट होकर वर मांगने ने को कहा ।
शिवजी -हे पुत्र मैं इच्छित वर मांगो । मैं तुम्हारी इस कठिन तपस्या से प्रसन्न हुआ । तुम्हारे लिये मुझे कुछ भी अदेय नही । मैं तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूरी करूंगा । पुरूरवा ने महादेव जी को साष्टांग प्रणामकरते हुये कहा – हे प्रभो यदि आप मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं तो मुझे समस्त प्राणीमात्र के कल्याण के लिए निर्जल हो रही इस पृथ्वी पर आपकी पुत्री नर्मदा नदी रूप में चाहिये । जिसके दर्शन मात्र से ही देव मानव सभी तृप्त हो सकें । सभी के कल्याण के लिये देवी नर्मदा का पृथ्वी पर अवतरण आवश्यक है क्यों कि वह चिर स्थायी होकर सदा के लिये वहीं रहेगी ।

पुरूरवा की बात सुनकर चिंतित और दुखी होते हुये शिवजी ने कहा – पुत्र अयाच्य की कामना मत करो । मेरी पुत्री का दर्शन देवताओं के लिये भी दुर्लभ है । अत:नर्मदा के स्थान पर और जो चाहो वह मांग लो । पुरूरवा -हे महादेव ! मैं प्राण जाने पर भी कुछ और नही मांगूंगा । मैनें इसी संकल्प को लेकर यह कठिन तपस्या की । मेरा निश्चय अटल है । इसी में लोक कल्याण है । देव मानव एवं पितरों की तृप्ति भी इसी में है । बेमन से चिंतित होते हुये शिव जी वरदान देकर अंतर्ध्यान होगये । वरदान पाकर पुरूरवा अपनी राजधानी लौट आये और प्रतीक्षा करने लगे शिवजी के अगले आदेश एवं नर्मदा के पृथ्वी पर अवतरण की । इधर शिवजी ने अपनी पुत्री नर्मदा से अपने वरदान की बात कहते हुये उसके पृथ्वी पर अवतरण की बात कही । नर्मदा ने कहा-पिता श्री मैं आपके बिन कैसे वहां रहूंगी आपको मेरे साथ मेरे सभी तटों पर मुझे दर्शन देते हुये निवास करना होगा । मेरे अवतरण के समय मेरी शक्ति को सहन करने वाला भी तो होना चाहिये जहां मैं अवतरित हो सकूं । तब शिव जी ने हिमालय की ओर देखा तो हिमालय ने कहा मैं तो प्रभू अभी शैशवास्था में हूं अत:देवी नर्मदा को वहन करने की शक्ति मुझमें नही । चिंतित होकर सभी पर्वतों को बुलाकर शिव जी ने अपनी बात कही तब विंध्याचल ने गर्व से सिर उन्नतकरते हुये कहा कि मेरा पुत्र पर्यंक युवा है उसके एक ओर पृथ्वी की मेखला मैकाल है तो दूसरी ओर सतपुड़ा । अत: वह देवी की सभी के साथ मिलकर शक्ति को वहन कर लेगा मेरा तो वह निवास ही है और मैं सबसे पुराने पर्वतों में हूं । अत:यह गौरव मुझे ही प्रदान किया जाये । आप स्वयं वहां निवास करेंगे विंध्याचल की बात सुनकर उमा के साथ विहार करते हुये अमरकंटक पहुंचे । वहां का सुरभित वातावरण उन्हें रास आया और एक दिन डमरू बजाते हुये उमा के साथ लास्य नृत्य करते हुये दोनों की पसीने की बूंदें रव बन कर जब पृथ्वी पर गिरीं तो नर्मदा उन्हीं पसीनें की बूंदों से संयोग करती रेवा बनकर प्रकट होगई । अपनी पुत्री का इस रूप में अवतरण देख शिव जी आनंदित होकर बोले आजसे तुम्हारा नाम रेवा होगा ।
नर्मदा के अवतरण की बात सुनकर सर्वप्रथम पुरूरवा एवं उनके साथ आये भृगु ऋषि आदि सभी मुनियों शिव पार्वती के साथ देवी नर्मदा की वंदना करते हुये उन्हें मां नर्मदे कह कर स्तुति गान किया । इसलिए नर्मदा को शांकरी और सबसे प्राचीन नदी कहा गया । जय मां नरमदे हर हर नरमदे ।
उषा सक्सेना

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