Thursday, 21 November 2024

इस प्यार को क्या नाम दे दूं ?, सबसे बड़ा है मुद्दा

Noida News : उत्तर प्रदेश के रहने वाले एक बड़े बुद्धिजीवी ने एक संपादकीय आलेख लिखा है। उत्तर प्रदेश के नोएडा…

इस प्यार को क्या नाम दे दूं ?, सबसे बड़ा है मुद्दा

Noida News : उत्तर प्रदेश के रहने वाले एक बड़े बुद्धिजीवी ने एक संपादकीय आलेख लिखा है। उत्तर प्रदेश के नोएडा शहर में रहने वाले इन बुद्धिजीवी का नाम बलबीर पुंज है। उत्तर प्रदेश में निवास करने वाले बलबीर पुंज राज्यसभा के सांसद रहे हैं। उनके द्वारा लिखा गया संपादकीय आलेख केवल उत्तर प्रदेश के विषय में नहीं है बल्कि उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश को संबोधित करने वाला आलेख है। हम बिना काट-छांट के उनका पूरा संपादकीय आलेख आपको ज्यों का त्यों पढ़वा रहे हैं।

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इस प्यार को क्या नाम दें ?

अगर यह लव जिहाद नहीं है, तो क्या है? उसने कबूल किया कि वह मेरी बेटी से प्यार करता था और जब मेरी बेटी ने इन्कार कर दिया, तब उसने उसे मार डाला। लव जिहाद के लिए वे अच्छे परिवारों की लड़कियों को निशाना बनाते हैं। फैयाज मेरी बेटी का मतांतरण करना चाहता था। नेहा की हत्या द’ केरल स्टोरी की तरह है।’ मीडिया के समक्ष यह आक्रोश कर्नाटक स्थित हुबली-धारवाड़ नगर निगम में कांग्रेस के पार्षद निरंजन हिरेमथ ने प्रकट किया है। गत 18 अप्रैल को उनकी बेटी नेहा की उसके सहपाठी मोहम्मद फैयाज ने सरेआम कई बार चाकुओं से गोदकर हत्या कर दी। इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है। हत्याकांड कितना भयावह था, वह नेहा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से स्पष्ट है। इसके अनुसार, फैयाज ने नेहा पर 30 सेकंड में 14 बार चाकू से वार किए थे और यहां तक कि उसका गला काटने का भी प्रयास किया था।

यह विडंबना है कि निरंजन हिरेमथ उस दल के सदस्य हैं, जो मुखर होकर वर्षों से ‘लव जिहाद’ और उस पर आधारित फिल्म द केरल स्टोरी को ‘इस्लामोफोबिया’ से प्रेरित कल्पना और भाजपा-संघ का प्रोपेगेंडा बता रहे हैं। जब केरल स्थित कुछ चर्च संगठनों ने अपने समाज में जागरूकता फैलाने हेतु पिछले दिनों फिल्म द केरल स्टोरी को कई स्थानों पर प्रदर्शित किया और जब सार्वजनिक चैनल दूरदर्शन ने पांच अप्रैल को इस फिल्म का प्रसारण किया, तब भी वामपंथियों के साथ कांग्रेस ने इसका विरोध किया होंठों था। वही तेवर नेहा हिरेमथ हत्याकांड में दिख रहा है।

हालिया दिनों में ‘लव जिहाद’ की शिकार केवल नेहा ही नहीं है। इस नृशंस हत्या से स्तब्ध कर्नाटक की एक अन्य हिंदू छात्रा ने जब अपने प्रेमी आफताब के साथ संबंध तोड़े, तो इससे गुस्साए आफताब ने हमला करके उसे घायल कर दिया। पीड़िता के अनुसार, उसकी मुस्लिम सहेली ने उसे आफताब से मित्रता हेतु विवश किया था। इसके अतिरिक्त, प्रदेश के ही बेलगावी में विवाहित दलित महिला ने रफीक और उसकी बेगम पर जबरन मतांतरण करने का आरोप लगाया है। पुलिस में दर्ज शिकायत के अनुसार, रफीक ने बहला-फुसलाकर अपनी बेगम के सामने पहले उसका बलात्कार किया, जिसकी तस्वीरें तक ली गईं। फिर उसे सिंदूर हटाने, बुर्का पहनने, नमाज अदा करने और अपने हिंदू पति को तलाक देकर इस्लाम कबूलने का दबाव बनाना और धमकाना शुरू कर दिया।

शेष भारत के अलग-अलग कोनों से भी ऐसे कई मामले सामने आए मु हैं, जिन्हें ‘लव जिहाद’ के तौर पर परिभाषित किया जा रहा है। महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर में ताहेर पठान के खिलाफ अपनी मजहबी पहचान छिपाकर 27 वर्षीय हिंदू युवती को प्रेमजाल में फंसाकर यौन- उत्पीडऩ करने, उसका वीडियो बनाने, जबरन गौमांस खिलाने और मतांतरण करने का मामला दर्ज हुआ है। वहीं मध्य प्रदेश के गुना में • अयान पठान पर पड़ोस की एक हिंदू युवती ने प्रेम के नाम पर उसे बंधक बनाकर बलात्कार करने, बेल्ट पाइप से बुरी तरह से पीटने, उसके जख्मों पर नमक-मिर्च डालने और चीखने से रोकने के लिए होंठों को फेवीक्विक से चिपकाने का आरोप लगाया है।

अतीत में कई मुस्लिम शासकों द्वारा इस्लाम के प्रचार-प्रसार हेतु डराने-धमकाने और हिंसा के उदाहरण मिलते हैं। अब ‘तकैयाह’ प्रथा (पवित्र धोखा) के अंतर्गत झूठ बोलकर और छल-फरेब से मतांतरण के मामले सामने आ रहे हैं। कुछ जानकारों ने ऐसे मजहबी चक्रव्यूह, जिसमें प्रेम के नाम पर गैर-मुस्लिमों से शारीरिक संबंध बनाकर मतांतरण का दबाव डाला जाता है, को सार्वजनिक विमर्श में ‘लव- जिहाद’ का नाम दिया है। यह शब्दावली विरोधाभासी है। इसमें प्रेम नहीं, अपितु इस्लाम का प्रसार करने की प्रतिबद्धता है, जिसमें ‘सवाब’ मिलने की अवधारणा है। शायद इसलिए कई बार ‘लव जिहाद’ के मामलों में आरोपी या दोषी को पूरा समर्थन तक हासिल हो जाता है।

‘लव जिहाद’ संज्ञा भले ही नई हो, परंतु हिंदू-ईसाई समाज कई दशकों से इस पर अपनी चिंता प्रकट कर रहे हैं। एक अमेरिकी ईसाई मिशनरी क्लिफर्ड मैनशार्ट ने 1936 में लंदन से प्रकाशित अपनी पुस्तक द हिंदू-मुस्लिम प्रॉब्लम इन इंडिया के पृष्ठ 48 पर हिंदू महिलाओं को चुराने और बहकाने की कोशिशों का उल्लेख किया है। गत वर्ष ब्रिटेन की तत्कालीन गृहमंत्री स्वेला ब्रेवरमैन ने कहा था- ‘पाकिस्तानी मूल के मुसलमान श्वेत ब्रितानी लड़कियों से उनकी मुश्किल परिस्थितियों के दौरान बलात्कार करते है और ड्रग्स देते हैं।’ रॉचडेल (2008-12) और रॉदरहम (1970-2014) में गैर-मुस्लिम युवतियों (अधिकांश ईसाई और नाबालिग के भयावह यौन उत्पीडऩ इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं, जिसमें पाकिस्तान और अफगान मूल के कई नागरिक दोषी पाए गए थे। कुछ वर्ष पहले ब्रिटेन स्थित एक सिख संगठन ने भी दावा किया था कि वर्ष 1960 से स्थानीय हिंदू-सिख युवतियों का मुस्लिम युवकों द्वारा यौन शोषण हो रहा है। तब इस मामले को ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सांसद सारहा चैंपियन ने भी जोर-शोर से उठाया था। आखिर यह कैसी मानसिकता है? डेमोग्राफिक इस्लामिजेशन नॉन- मुस्लिम्स इन मुस्लिम कंट्री नामक दस्तावेज में फ्रांसीसी समाजशास्त्री और यूरोपीय विश्वविद्यालय में प्रवासन मीति केंद्र के निदेशक फिलिप फर्ग्यूस कहते हैं, ‘प्रेम अब सतत इस्लामीकरण की प्रक्रिया में वही भूमिका निभा रहा है, जो अतीत में बलपूर्वक किया जाता था।’ ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में इस्लामी इतिहासकार क्रिश्चियन सी. साहनर ने अपनी पुस्तक क्रिश्चियन मायर्स अंडर इस्लाम: रिलीजियस वॉयलेंस ऐंड मेकिंग ऑफ द मुस्लिम वर्ल्ड में लिखा है, ‘इस्लाम शयन कक्ष के माध्यम से ईसाई दुनिया में फैला।’

निस्संदेह, सभ्य समाज की जिम्मेदारी है कि वह दो वयस्कों के प्रेम- संबंध के बीच मजहब या जाति की दीवार कभी खड़ी नहीं होने दे। परंतु छल-कपट और अपनी मजहबी पहचान छिपाकर बनाया गया रिश्ता, किसी भी सूरत में प्रेम नहीं कहा जाएगा। कोई आश्चर्य नहीं कि अपने अभियान में विफल होने या उसका भंडाफोड़ होने पर कथित ‘प्रेमी’ हिंसक हो जाते हैं और अपनी ‘प्रेमिका/पत्नी’ की हत्या करने में संकोच भी नहीं करते हैं।

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