Wednesday, 19 March 2025

Chetna Manch Special : पहले सरदार, फिर लौह पुरुष बने बल्लभ भाई पटेल

भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री, प्रथम गृह मंत्री तथा रियासती मामलों के प्रभारी सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर…

Chetna Manch Special : पहले सरदार, फिर लौह पुरुष बने बल्लभ भाई पटेल

भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री, प्रथम गृह मंत्री तथा रियासती मामलों के प्रभारी सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के खेड़ा जिले के नाडियाड नामक कस्बे में हुआ था। तब यह जगह मुंबई प्रेसिडेंसी में आती थी। इनके पिता का नाम झावर भाई पटेल व माता का नाम लाडवा बाई था। सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्राथमिक शिक्षा गुजरात में और कानून की पढ़ाई मिडल टेंपल लंदन में हुई थी।

शुरुआत में वल्लभ भाई पटेल गांधी जी की विचारधारा से सहमत नहीं थे। वह मानते थे कि संडास साफ कर व ब्रम्हचर्य व्रत का पालन कर आजादी हासिल नहीं हो सकती है, किंतु जब गांधी जी ने किसानों के हित में चंपारण से सत्याग्रह शुरू किया तथा आंदोलन में बड़ी संख्या में किसान उनसे जुड़े तब वल्लभभाई पटेल गांधी जी से बड़े प्रभावित हुए।

मुंबई प्रेसिडेंसी पॉलिटिकल कान्फ्रेंस में गांधी जी द्वारा रेजोल्यूशन आफ लॉयल्टी टू ब्रिटिश किंग का प्रस्ताव फाड़े जाने पर सरदार वल्लभभाई पटेल उनके साथ हो गए। उन्होंने अपनी कोट पैंट की वेशभूषा त्याग दी और धोती कुर्ता पहनना शुरू कर दिया। मातृ भाषा में बातचीत करना शुरू कर दिया और पूरी तरह से आजादी के आंदोलन से जुड़ गए। उनका मानना था कि वह वकालत के पेशे से धन तो बहुत कमा सकते हैं, किंतु आजादी नहीं प्राप्त की जा सकती है।

Chetna Manch Special :

सन् 1928 की बात है, बारदोली तालुके में कहीं वृष्टि और कहीं सूखा पड़ने के कारण फसलें अच्छी नहीं हुई, किंतु ब्रिटिश सरकार ने अपना टैक्स 6 परसेंट से बढ़ाकर 22 परसेंट तक कर दिया। किसानों द्वारा इसका विरोध किया गया और गांधी जी से इस आंदोलन का नेतृत्व करने और मदद करने का आग्रह किया गया। गांधी जी उस समय कुछ अन्य कार्यों में व्यस्त थे। अतः उन्होंने किसानों का सहयोग करने के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल को बारदोली भेजा। वल्लभभाई पटेल उस समय तक सरदार नहीं बने थे। केवल वल्लभ भाई पटेल ही थे। वल्लभ भाई पटेल ने वहां पहुंचकर सारी समस्याओं का आकलन किया और यह पाया कि ब्रिटिश सरकार ने किसानों को यह धमकी दी है कि अगर वह टैक्स नहीं चुकाएंगे तो उनकी जमीन नीलाम कर दी जाएगी। बल्लभ भाई पटेल कानून की वकालत करते रहे थे। वकालत की डिग्री भी उन्होंने ली थी। वह जानते थे कि जब तक किसान किसी कागज पर अपना अंगूठा नहीं लगाएंगे या हस्ताक्षर नहीं करेंगे, ब्रिटिश सरकार उनकी जमीन नहीं ले पाएगी।

उन्होंने यह पता लगाने के लिए गुप्तचरों की एक टीम गठित की कि आज ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि किस किसान के घर उसकी जमीन हड़पने आएंगे। बल्लभ भाई पटेल उस व्यक्ति को पहले ही वहां से भगा देते थे। दो-तीन महीने तक वह किसान अपने घर नहीं आता था। इस तरह से बहुत सारे किसानों को उन्होंने उनके घर से भगाकर उनकी जमीनों की रक्षा की। सरकार ने देखा कि ना तो वह किसानों से टैक्स वसूल पा रही है और ना ही वह जमीन पर कब्जा कर पा रही है, तब उसने किसानों के साथ समझौता किया और टैक्स की राशि घटाकर 6 फीसदी कर दी। किसानों के परिवारों की महिलाएं इस आंदोलन और अपनी जमीनें बच जाने से अत्यंत प्रसन्न हुईं और उन्होंने खुश होकर वल्लभ भाई पटेल को सरदार की उपाधि दी।

क्या गांधी जी ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया :

देश आजादी के मुहाने पर खड़ा था और कांग्रेस को आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री का चुनाव करना था। कांग्रेस ने यह तय किया था कि 1946 में कांग्रेस का जो भी अध्यक्ष होगा, वही अंतरिम सरकार का प्रधानमंत्री भी होगा। अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए नियम था कि प्रांतीय कांग्रेस कमेटियां अध्यक्ष पद के उम्मीदवार का नाम प्रस्तावित करती थीं। उस समय 15 प्रांतीय कमेटियों में से 12 ने सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम का प्रस्ताव किया था। दो कमेटियों ने आचार्य जीबी कृपलानी के नाम का प्रस्ताव किया था। आश्चर्यजनक रूप से जवाहर लाल नेहरू के नाम का प्रस्ताव किसी भी प्रांतीय कांग्रेस कमेटी ने नहीं किया था। फिर भी गांधी जी के हस्तक्षेप एवं जवाहर लाल नेहरू की महत्वाकांक्षा ने सरदार भाई वल्लभ भाई पटेल को अध्यक्ष पद से अपनी उम्मीदवारी वापस लेने को मजबूर कर दिया। यहां यह भी बताना चाहूंगा कि इसके पूर्व 1929, 1936 और 1939 में गांधी जी की इच्छा का सम्मान करते हुए सरदार वल्लभ भाई पटेल अध्यक्ष पद से अपने कदम पीछे खींच चुके थे।

बाद में गांधी जी से जब इस संबंध में पूछा गया तो उनका कहना था कि अगर नेहरू प्रधानमंत्री न बनते तो शायद वह कांग्रेस को तोड़ देते जो कि उस समय देश के हित में नहीं था, क्योंकि इसका फायदा ब्रिटिश सरकार उठाती।

रियासतों का एकीकरण :

सरदार वल्लभ भाई पटेल को हम जिसके लिए सर्वाधिक याद करते हैं, जिसके लिए यह देश सदा उनका ऋणी रहेगा, वह है आजादी के समय भारत में स्थित लगभग 565 रियासतों को भारतीय संघ में विलय कर भारत राष्ट्र का निर्माण करना। सरकार ने भारतीय रियासतों को यह छूट दी थी कि वह चाहें तो भारत के साथ रह सकती हैं और चाहें तो पाकिस्तान में विलय कर सकती हैं या अपना स्वतंत्र अस्तित्व कायम रख सकती हैं। यह लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ही थे, जिन्होंने साम दाम दंड भेद सभी तरीकों से इन सभी रियासतों का भारत संघ में विलय कर भारत को एक राष्ट्र का स्वरूप दिया।

Chetna Manch Special :

सरदार वल्लभ भाई पटेल ने रियासतों के राजाओं और नवाबों को यह समझाया कि उनकी रियासतों की जनता ने आजादी के आंदोलन में जो अपना सर्वस्व त्याग किया है, आत्म बलिदान किया है। वह सिर्फ अंग्रेजों की सत्ता से मुक्ति के लिए नहीं है, बल्कि वह आपके कुशासन से भी मुक्ति चाहते हैं।

अंत में केवल तीन रियासतें ही ऐसी थीं, जो पाकिस्तान में विलय चाहती थीं या अपना स्वतंत्र अस्तित्व कायम रखना चाहती थीं। इनमें जूनागढ़ का नवाब पाकिस्तान में विलय चाहता था, किंतु सरदार पटेल ने जूनागढ़ में निवास करने वाली जनता को उसके विरुद्ध खड़ा कर उसे यह स्पष्ट कर दिया कि तुम अकेले भले ही पाकिस्तान में मिलना चाहते हो, पर तुम्हारे रियासत की सारी जनता भारत के साथ रहना चाहती है। आखिर जूनागढ़ का विलय भारत के साथ हुआ। हैदराबाद के नवाब को भ्रम था कि वह अत्यंत शक्तिशाली है। उसके पास बहुत धन संपत्ति है। बड़ी सेना है। उसने पाकिस्तान की सरकार को 20 करोड़ रुपये का कर्ज भी दे दिया था। अंत में सरदार वल्लभ भाई पटेल को उसके विरुद्ध सेना उतारनी पड़ी। पुलिस एक्शन किया गया। इस प्रकार हैदराबाद जो कि भारत का मध्य भाग था, उसका भारत के साथ विलय हुआ। यहां मैं यह बताना चाहूंगा कि हैदराबाद उस समय आज के हैदराबाद जैसा नहीं था। इसमें आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और मध्य प्रदेश का काफी भाग शामिल था।

केवल जम्मू एंड कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत में विलय से इंकार कर दिया था और उन्होंने अपने राज्य को स्वतंत्र राज्य रखने का निश्चय किया था, किंतु पाकिस्तान की सेना द्वारा कबायलियों के भेष में जम्मू कश्मीर में आक्रमण करने पर राजा हरि सिंह द्वारा 26 अक्टूबर 1947 को विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा जम्मू कश्मीर को पाकिस्तानी आक्रमण से बचाने के लिए अपनी सेना भेजकर जम्मू कश्मीर राज्य की सुरक्षा की गई।

Chetna Manch Special :

अगर सरदार वल्लभ भाई पटेल न होते तो आज भारत में बहुत सारे देश होते। हम दिल्ली से केरल तक जाते तो हमें रास्ते में दस जगह वीजा लगवाना होता। दस जगह स्टांप लगवाते और कहते हैं कि मैं बहुत बड़ा फॉरेन टूर करके आया हूं। यह देखो मेरा पासपोर्ट। दिल्ली से त्रिवेंद्रम के बीच जो ट्रेन चलती है न, वह अंतरराष्ट्रीय ट्रेन होती, जिसमें हर कुछ किलोमीटर के बाद हम एक नए देश में प्रवेश करते और एक नए देश से बाहर निकलते।

मेरे मन में अक्सर यह सवाल आता है कि गांधी जी ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को 1946 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद से अपनी उम्मीदवारी वापस लेने हेतु क्यों विवश किया, क्या बात सिर्फ इतनी थी जैसा कि बाद में गांधी जी ने कहा था कि जवाहर लाल नेहरू कांग्रेस में दो नंबर की पोजीशन पर नहीं रहना चाहते थे और यदि उन्हें अध्यक्ष ना बनाया जाता तो वह कांग्रेस को तोड़ देते, जिससे ब्रिटिश सरकार को बहुत फायदा होता। लेकिन, गांधी जी का तो खुद ही यह विचार था कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कांग्रेस को भंग कर दिया जाना चाहिए। तब फिर बात क्या कुछ और थी, क्या गांधी जी एक ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे, जिसकी डोर उनके हाथ में थी, जो कांग्रेस पार्टी के समर्थन से नहीं, बल्कि गांधीजी के समर्थन से प्रधानमंत्री बनने जा रहा था। क्या कांग्रेस का आज का चरित्र उस समय ही नहीं गढ़ा गया था।

एक बात और आपसे शेयर करना चाहता हूं। भारत-पाकिस्तान की संपत्तियों के विभाजन के समय यह तय हुआ था कि भारत सरकार 75 करोड़ रुपये पाकिस्तान को देगी, जिसमें से सरदार वल्लभ भाई पटेल ने यह भी निश्चय किया था कि 20 करोड़ तत्काल एवं 55 करोड़ बाद में दिए जाएंगे। सरदार सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा पाकिस्तान सरकार को धन अदायगी न किए जाने पर महात्मा गांधी द्वारा अनशन शुरू कर दिया गया था। इससे क्या साबित होता है, एक ऐसा व्यक्ति जिसके लिए राष्ट्र सबसे ऊपर था, जो स्वयं कठोर निर्णय ले सकता था, उसे स्वतंत्र भारत का प्रथम प्रधानमंत्री क्यों नहीं होना चाहिए था, यह निर्णय मैं पाठकों पर छोड़ता हूं। जबकि सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा पाकिस्तान सरकार द्वारा भारत के विरुद्ध की जा रही कार्रवाइयों और छद्म युद्ध के कारण ही यह धनराशि रोकी गई थी।

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