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भारत के सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, नहीं चलेगा जातिवाद

Supreme Court

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Supreme Court : भारत के सुप्रीम कोर्ट ने जातिवाद को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के इस फैसले को क्रंतिकारी फैसला भी कहा जा रहा है। कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को सबसे बड़ा फैसला भी बोल रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह बड़ा फैसला जातिवाद को लेकर आया है। सुप्रीम कोर्ट ने भारत की जेलों में बंद कैदियों के बीच जाति के आधार पर भेदभाव करने को गैर कानूनी तथा असंवैधानिक करार दिया है।

क्या है सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला?

बृहस्पतिवार को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट के इस बड़े फैसले से जातिवाद पर करारा प्रहार हुआ है। अपने बड़े फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में जाति के आधार पर कैदियों के बीच काम के बंटवारे को असांविधानिक करार दिया है। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि भेदभाव बढ़ाने वाले सभी प्रावधानों को खत्म किया जाए। शीर्ष कोर्ट ने राज्यों के जेल मैनुअल के जाति आधारित प्रावधानों को रद्द करते हुए सभी राज्यों को फैसले के अनुरूप तीन माह में बदलाव का निर्देश दिया है।

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला व जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, भेदभाव करने वाले सभी प्रावधान असांविधानिक ठहराए जाते हैं। पीठ ने जेल में जातिगत भेदभाव पर स्वत: संज्ञान लेते हुए रजिस्ट्री को तीन महीने बाद मामले को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने सभी राज्यों को इसी समय फैसले के अनुपालन की रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा है।

छोटी जाति वालों से सफाई तथा ऊंची जाति वालों से खाना

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाशिए पर पड़े लोगों को सफाई और झाडू लगाने और ऊंची जाति के लोगों को खाना पकाने का काम सौंपना संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है। कैदियों के बीच इस तरह का भेदभाव नहीं हो सकता। जेल नियमावली इस तरह के भेदभाव की पुष्टि कर रही है। पीठ ने कहा, ऐसे अप्रत्यक्ष वाक्यांशों का इस्तेमाल, जो तथाकथित निचली जातियों को निशाना बनाते हैं, हमारे सांविधानिक ढांचे के भीतर नहीं किया जा सकता है।

जाति से कोई अपराधी नहीं हो जाता

अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, राज्य जेल मैनुअल में जाति के आधार पर आदतन अपराधियों के संदर्भ वाले प्रावधान असांविधानिक घोषित किए जाते हैं। कई जेल मैनुअल या नियम आदतन अपराधियों को विमुक्त जनजातियों के सदस्य के रूप में अधिसूचित करते हैं। इसका वर्गीकरण विमुक्त जनजातियों को लक्षित करने के लिए नहीं किया जा सकता है। ऐसे सभी प्रावधान असांविधानिक हैं।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रमुख बात

सुप्रीम कोर्ट के बड़े फैसले में कहा गया है कि सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश 3 महीने के भीतर जेल मैनुअल / नियमों में संशोधन करें। केंद्र सरकार तीन महीने के भीतर मॉडल जेल मैनुअल-2016 और मॉडल जेल और सुधार सेवा अधिनियम, 2013 में जाति- आधारित भेदभाव दूर करने के लिए जरूरी कदम उठाए। जेल के अंदर विचाराधीन या दोषी कैदियों के रजिस्टर में जाति कॉलम और जाति का कोई भी संदर्भ न रखा जाए। जेलों के अंदर भेदभाव के संबंध में स्वत: संज्ञान कार्यवाही शुरू की। सुनवाई की पहली तारीख को केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को निर्णय की अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश। Supreme Court

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