Uttrakhand News : अल्मोड़ा (नवीन बिष्ट)। पलायन और ग्रामीण अर्थ व्यवस्था के विमर्श को लेकर उत्तराखण्ड सेवा निधि में संवाद कार्यशाला का आयोजन किया गया। मौका था पंजाब व पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे पद्मविभूषण बीडी पाण्डे की स्मृति में आयोजित ग्यारवें संवाद विमर्श कार्यशाला का। कार्यशाला में एक ओर जहां प्रदेश शासन में मुख्य सचिव उच्च प्रशासनिक पद में रहे अनुभवी सेवानिवृत्त अधिकारी थे तो दूसरी तरफ लोकसभा व विधानसभा सदस्यों ने शिरकत की। इनके अतिरिक्त जन सरोकारों से जुड़े एक्टविस्ट, अपने विषय के विशेषज्ञ थे तो समाज के ग्रामीण अंचलों से जुड़े युवा और पलायन का दंश झेल रहे सेवा से अवकाश प्राप्त लोगों ने भी भागीदारी निभाई। (Uttrakhand)
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कार्यशाला में आमंत्रित बतौर मुख्य अतिथि सांसद अजय टम्टा ने कहा कि पलायन रुके इसके लिए सरकार की ओर से पलायन रोकने ग्रामीण अर्थ व्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं, योजनाएं पारित भी की जा रही हैं। लेकिन कार्यरूप में परिणित करने की जिम्मेदारी जिन आईएएस अधिकारियों की होती है उनकी अरूचि के कारण कुछ नहीं हो पा रहा है। बात यह भी है रोजगार की तलाश में पलायन हो रहा है, यह स्वाभाविक है, यह बड़ी समस्या भी है। जितने लोग यहां हैं लगभग उतने ही रोजगार के बहाने बाहर चले जाते हैं। यहां सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा की सुविधा गांव-गांव पहुंचे इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी निरंतर विभिन्न योजनाओं के जरिए प्रयास कर रहे हैं। घर-घर जल, घर, रसोई गैस, किसान सम्मान जैसी योजनाओं के जरिए लोगों को सुविधा मिल रही है। लोग वापस आएं इसके लिए प्रयास जारी है, आज युवा जो बाहर काम कर रहे थे, अपने घर में बैठकर वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं। धीरे-धीरे समाधान की दिशा में जा रहे है।
Uttrakhand – शहर की ओर पलायन के कारण
प्रदेश में मुख्य सचिव पद पर रहे सीनियर आईएएस अधिकारी इंदु कुमार पाण्डे ने कहा कि पलायन सीधा सवाल नहीं यह बेहद उलझा मामला है। इसका सरल सैल्यूशन नहीं है। इसमें अलग-अलग दृष्टिकोण हैं, एक ये कि इसमें कोई बुराई नहीं है। यदि कोई चाहता है कि बाहर जाकर बेहतरी मिलेगी तो अच्छी बात है। पलायन पर अधिकांश वो लोग बात करते हैं जो खुद सुविधा में रहते हैं, मैं देहरादून में बैठा हूँ बहुत खुश हूँ, गांव में जाता हूँ तो कहता हूँ कि देखो ये लोग कितनी दिक्कतों में रह रहे हैं। ये क्यों पलायन कर रहे हैं, हमको माइंड सैट बदलना पड़ेगा। उन्होंने अपनी प्रशासनिक सेवा के दौरान का वाकया सुनाते हुए कहा कि तृतीय वित्त आयोग का मैं अध्यक्ष रहा तो कई बार गांव मेें जाना पड़ा, कई गांव में जाकर पलायन पर अध्ययन कराया। एक लड़की मिली जो ग्रेजुएशन कर रही थी, मैंने उससे पूछा तो उसने कहा कि मैं गांव में शादी नहीं करूंगी, मुझे गोबर नहीं उठाना है न पानी सारना है, चाहे क्लास फोर से ही शादी करनी पड़े, मैं शहर में शादी करूंगी। तब स्टडी कराई तो निकला कि 50 प्रतिशत से अधिक पलायन का कारण था रोजगार, फिर शिक्षा। उन्होंने कहा कि एक पलायन हुआ है आपदा के कारण, जो बहुत कम हुआ है। इस संदर्भ में जोशीमठ का भी उल्लेख इंदु पाण्डे ने किया। बाकी गांव जो हैं जब तक अवसर नहीं होंगे खास कर रोजगार के अवसर, दूसरा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए। उन्होंने कहा कि जब तक मूलभूत सुविधाओं को गांव तक नहीं पहुंचाया जाता हमारी ये अपेक्षा अर्थहीन है कि पूरा भारत घूम कर कोई आदमी सुविधाहीन घर में रहना चाहेगा। कोरोना के दौरान कुछ वापसी हुई लेकिन क्या हुआ। कुल मिला कर पलायन रोकना सरल नहीं है, इसके पुख्ता इंतजामात करने होंगे। पलायन रोकना संभव नहीं है विश्वभर में पलायन रोकने पर अध्ययन हुए हैं परिणाम यही निकले कि इसे रोका नहीं जा सकता है। बस इसके प्रबंधन की आवश्यकता है।
पलायन रोकने के लिए सरकार गंभीर नहीं : विधायक मनोज जोशी
कार्यशाला की अध्यक्षता कर रहे विधायक मनोज जोशी ने कहा कि पलायन और ग्रामीण अर्थ व्यवस्था बेहद संवेदनशील विषय है। सही बात यह है कि प्रदेश की भाजपा सरकार इसके लिए गम्भीर नहीं है। सरकार जब तक लोगों की मूलभूत जरूरतों को पूरा नहीं करेगी तो पलायन रुक ही नहीं सकता है। मौजूदा समय में ग्रामीण इलाकों में बन्दरों व सुअरों का इतना आतंक है कि ग्रामीणों ने खेती छोड़ दी है। क्या करेगा गांव का आदमी गांव में। शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बेसिक सुविधाएं मुहैया करानी होगी।
इस मौके पर कार्यक्रम के संयोजक पालिका अध्यक्ष प्रकाश चन्द्र जोशी ने बढ़ते पलायन पर चिन्ता जताई कहा कि सरकार को चाहिए कि जो भी कार्य योजना सरकार बनाए उसे धरातल पर उतारे, तभी जाकर पलायन को रोका जा सकता है। प्रभावी योजनाएं बने यह पूरी तरह सरकार की जिम्मेदारी है।
नदियों की हालत पर चिंता जाहिर की
प्रो. जे.एस रावत ने कहा पलायन रोकने के लिए युवाओं के पास स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर होना पहली शर्त है। उन्होंने कहा कि यहां की खनिज संपदा का यहीं उपयोग हो। यहां से रॉ मटीरियल नहीं, वस्तु के रूप में जाना चाहिए। मैग्नेसाइट, साफ्ट स्टोन, रेजन आदि तमाम उपयोगी वस्तुओं का प्रोडक्ट यहां से बाहर जाने चाहिए। उन्होेंने प्रदेश की 353 नदियों पर चिन्ता जाहिर करते हुए कहा कि पानी को सूखने से रोकनेे की बात अहम है।
उत्तराखण्ड सेवा निधि के निदेशक व संवाद के आयोजक पद्म भूशण डा. ललित पाण्डे ने कहा कि आज पलायन पर चिन्ता और रोकने की बात वही लोग कर रहे हैं जिन्होंने पलायन किया है। अपनी बेबाक टिप्पणी के जरिए ललित पाण्डे ने कहा कि कोरी काल्पनिक बातों के सहारे पलायन पर बात करना औचित्यहीन बात है। पलायन एक दिन में रुकने वाला नहीं ,यह लम्बी प्रक्रिया की बात है। इस पर ईमानदारी से काम करने की दरकार है।
ये लोग रहे उपस्थित
कार्यक्रम में विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान परिशद के निदेशक डा. लक्ष्मीकांत, पं. गोविन्द बल्लभ पर्यावरण संस्थान के निदेशक डा. विकास नोटियाल, पलायन निर्वाण आयोग के सुरेश सुयाल, अनिल साही, पूर्व महा लेखापरीक्षक निरंजन पंत, प्रो. वीडिएस नेगी, उत्तराखण्ड परिर्वतन पार्टी के अध्यक्ष पीसी तिवारी, पूर्व पालिका अध्यक्ष शोभा जोशी, पालिका सभासद हेम तिवारी, दिवान धपोेला, वसुधा पंत, तारा जोशी, पूर्व पालिका उपाध्यक्ष मीता जोशी, कैलाश गुरूरानी, रघु तिवारी, अनुराधा पाण्डे, सेवा निधि के कमल जोशी, रमा जोशी, लोक गायिका लता पाण्डे, पूरन रौतेला, विनय किरोला सहित अनेक लोग मौजूद थे। Uttrakhand
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